
पुरोला (उत्तरकाशी), 3 मई 2025: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र पुरोला में शनिवार दोपहर को अचानक मौसम का मिजाज बिगड़ गया। कुछ ही मिनटों में आसमान में काले बादल छा गए और तेज़ आंधी के साथ भीषण ओलावृष्टि शुरू हो गई। देखते ही देखते खेतों में खड़ी फसलें सफेद ओलों की चादर में दब गईं। इस अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदा ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया। फसल कटाई से ठीक पहले हुई इस ओलावृष्टि ने गांव-गांव में तबाही का मंजर खड़ा कर दिया है।

पुरोला क्षेत्र के कई गांवों में किसानों की गेहूं, टमाटर, आलू और सेब की फसलें तैयार थीं। कुछ किसान कटाई की तैयारी कर रहे थे, तो कुछ ने मंडियों में फसल भेजने की योजना बना रखी थी। लेकिन ओलावृष्टि ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
स्थानीय किसान सलदेव ने बताया कि, हमने गेहूं की कटाई शुरू भी नहीं की थी, सोचा था दो-तीन दिन में पूरा काम हो जाएगा। लेकिन ओलों ने पूरी फसल को चकनाचूर कर दिया। जो बालें पककर झुक चुकी थीं, वे जमीन से चिपक गई हैं। अब इससे अनाज निकलना भी मुश्किल होगा।
सेब और आलू की फसल की बर्बादी-
सेब उत्पादकों के लिए यह मौसम फूल और फल आने का समय होता है। सेब की बागवानी पहाड़ी क्षेत्रों की प्रमुख आय का स्रोत है। ओलावृष्टि ने पेड़ों पर लगे फूलों और छोटे-छोटे फलों को झड़वा दिया। कई स्थानों पर तेज़ हवाओं से पेड़ की शाखाएं भी टूट गईं।
एक अन्य किसान, तिलक चंद ने बताया कि3, सेब के पेड़ों में अभी छोटे फल आ ही रहे थे, इन पर ओलों की मार ऐसी पड़ी कि फूल और फल दोनों गिर गए, जितना नुकसान इस बार हुआ है, वैसा पिछले कई सालों में नहीं देखा !
आलू की खेती करने वाले किसानों को भी भारी नुकसान हुआ है। आलू की पत्तियां और तनों पर ओलों की सीधी चोट से फसल सड़ने की आशंका जताई जा रही है। खेतों में पानी भरने से और अधिक नुकसान की संभावना है।
किसानों की आँखों में आंसू और मन में निराशा

पुरोला क्षेत्र के अधिकांश किसान सीमांत और लघु किसान हैं, वे साल भर की मेहनत से जो थोड़ा बहुत उत्पादन करते हैं, वही उनकी आजीविका का मुख्य सहारा होता है। ओलावृष्टि के कारण अब वे कर्ज चुकाने और अगली फसल के लिए बीज-जोत की व्यवस्था करने को लेकर चिंता में डूब गए हैं।
गांव की महिला किसानों रमला देवी, वंदना और तस्वीरी देवी का कहना है कि, हमने कर्ज लेकर बीज और खाद डाली थी लेकिन अब समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें बच्चों की पढ़ाई का खर्च, घर का राशन सब इसी फसल पर निर्भर था।”
ओलों की मार – आंखों देखी
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, ओलावृष्टि लगभग 15 से 20 मिनट तक चली। ओलों का आकार मटर के दानों से लेकर छोटे पत्थरों जितना था। ओलावृष्टि से खेतों के अलावा सब्जियों की क्यारियाँ, बगीचे और छप्पर भी प्रभावित हुए।
प्राकृतिक आपदा का बढ़ता खतरा
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस साल सर्दियों में बर्फबारी भी नहीं हुई , मौसम का ऐसा व्यवहार पिछले कुछ वर्षों में अधिक देखने को मिल रहा है,कभी असमय बारिश, और कभी ओलावृष्टि किसानों को अब फसल बोने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है।
नुकसान का आकलन अभी बाकी

हालांकि अभी तक किसी संस्था द्वारा नुकसान का आधिकारिक आंकलन नहीं हुआ है, लेकिन किसानों के अनुमान के अनुसार इस बार क्षेत्र में 60 से 70 प्रतिशत तक फसल को क्षति पहुंची है। अगर मौसम दोबारा खराब हुआ, तो यह नुकसान और भी ज्यादा बढ़ सकता है।
पुरोला की यह ओलावृष्टि केवल एक मौसमीय घटना नहीं, बल्कि यह पहाड़ी किसानों की नाजुक आर्थिक स्थिति की एक मार्मिक तस्वीर है, जो उस तंत्र से सवाल पूछ रही हैं, जो हर बार आपदा के बाद जागता है।